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मैं पहचान लेता हूँ
अपनी कविताएँ
उन कविताओं में
जो लिखी जा रही हैं आजकल।
सब कुछ है स्पष्ट यहाँ : मैं गाता हूँ
और दूसरे सुनते हैं मेरा गीत।
उनकी आवाजें
पूरी तरह मिल जाती है मेरी आवाज से
पर आश्चर्य है तो यह :
खोकर यौवन और उत्साह,
थक कर भविष्यवाणी करते
मैं अब बोलता हूँ आहिस्ता और धीरे-से,
और मेरे पास कहने को जो बचा होता है
उसे मैं सुनता हूँ दूसरों के मुँह से,
जिसे कहने के लिए अभी मैंने मुँह खोला नहीं होता
उसकी पहले ही वे कर चुके होते हैं घोषणा।
और जो कुछ देख रहा होता हूँ सपने में
उसे बता चुके होते हैं वे
सुबह होने से पहले।
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